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Tuesday, January 11, 2011

उलझन

पता नहीं| क्यों इक अजीब सी उलझन है |  इक खालीपन है सब कुछ है मेरे पास इक घर इक परिवार दोस्त और रोजगार भी | फिर भी न जाने क्यों मन मै इक खालीपन सा है | इक बात है इस जिंदगी की हम जिन उलझनों से दूर भागते है वो हमेशा हमरे पास ही रहती है | अगर कोई समस्या  नहीं है तो भी इक समस्या सी रहती है मेरे सामने न कल का सबाल है न आज का फिर भी  मन क्यों उदास है| मुझे कुछ  करना है मुझे आगे बदना है| के जूनून ने मुझे आज इस मुकाम पर ला दिया है के मै कुछ कर सकू  | पर पता नहीं मै कुछ क्यों नहीं कर पा रहा हू  |हर इक नया कम हमेशा के तरह मेरे मन लाखो सबाल पैदा कर रहा है  | के कल क्या होगा लगता है जिंदगी ऐसे ही लाखो सबालों के जबाब खोजते खोजते ही कटेगी


हर तरफ सबल ही सबल है जिंदगी मै
हर इक मंजिल के बाद फिर अनजाने रस्ते है जिन्दगी मे
मै नहीं जनता के मे कहा हू पर हर सबल जबाब है जिन्दगी मे

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