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Saturday, April 3, 2010

sambandho ka dayra

हर इक सितम का जबाब हमने आशुओ से दिया
उसने मेरी इसी आदत को अपनी आदत  बना लिया
न रहा हमारा दायरा हम तक
तुम भी हो गए सीमित मुझ तक

सबको शिक्षा
      मुन्नी जो कल तक तक अपने स्कूल क बैग को  अलदीन का चिराग समझती थी अचानक
 उससे डरने लगी  कहती है माँ मै स्कूल नहीं जाउंगी  मास्टर जी कहा की तुम जैसे लोग सरकारी स्कूल की गंदगी मै  ही अच्छे लगते हो  प्राइवेट स्कूल तो तुम्हे मजबूरी मै  देना पद रहा है

1 comment:

  1. सच कहा मुकेश जी, बच्चों की रूचि-अरुचि समाज के हम जैसे ही लोग निर्मित करते हैं।

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