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Sunday, April 4, 2010

sambedna

कभी कभी  हम ;ऐसी कोई बात सोचते है 'जो सामने  वाला भी सोच रहा होता  है जैसे दो लोग इक ही चीज से डर रहे हो पर उनमे से  कोई इक पहले अपना डर बता दे  [ हम   खुद भी उससे डर रहे हो तो  ] ; हम तुरंत उससे  कहेगे की भी तुम तो बड़े डर पोंक हो मगर अंदर की बात तो यही है हमने   अपनी  कमजोरी को किसी और  के सर पर फोड़ दिया  शायद मैंने आज ऐसा ही किया मै किसी कारण से किसी से  मिलना नहीं  चाह रहा था पर मैंने जब  जान लिया की वो  भी  मुझसे नहीं मिलना चाह रहा है. तो मैंने न मिलने का  सारा दोष उसी पर डाल दिया. मै इकदम गलत था पर मै इसी बात पर अपने दोस्त से नाराज  हो गया  की वो  मुझसे   मिलने क्यों नहीं आया     लगता है मैंने गलती की है मुझे उससे गुस्सा नहीं होना चाहिए था  

1 comment:

  1. मन की एक छिपी वास्तविकता को प्रकट किया। यही सच्चाई आपका लेखन बेहतर करेगी।

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