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Saturday, March 19, 2011

बोलो प्यारे होली है

पता नहीं कब से ये शब्द "बोलो प्यारे होली है " मेरे मोहल्ले में गूंजते _गूंजते  मेरे मुह से भी निकलने लगे  आज हमारे मोहल्ले मे  फिर छोटे -छोटे बच्चे वही शब्द बोल रहे थे    हमारे  शहर में  गली गली चोराहे पर होली जलाई जाती है वहा इक बास मे गेहू की बाले और चने के पेड़ को बाधकर जलाते है माना जाता है की यह पहली फसल का अग्नि देवता  को अर्पण होता है  होली के बीच का झंडा जिस दिशा में गिरता है बहा फसल  काफी अच्छी होती है  उसी होली से सब लोग थोड़ी सी आग घर पर ले आते जहा गोबर से बनाये गए गोल गोल बरुले जलाये जाते है उसमे थोडा सा आटा राइ से  सबकी नजर उतारी जाती है   पास में ही मंदिर मे  राइ नाच होता है जिसकी नगड़िया आवाज मेरे कानो तक पहुचती     रहती है थोड़ी  देर बाद लोगो  के झुण्ड रात मे सडको पर निकलता है और कुछ नारे लगता है  जैसे ''बोलो प्यारे होली है  , इक लकडिया दो कंडा हम होली के पंडा , होली के हुडदंग मे बब्बा बूदी तंग  मे ,इत्तो अंडा कए को आल को जो कोई -- की लुगाई को --ने बोले --को   अगले दिन धुरेडी होती है जिसमे सारा शहर  रंगों से सरोबर हो जाता है -----------------बोलो प्यारे होली है |

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