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Wednesday, May 4, 2011

दिल्ली से इंदौर

         ६ अप्रैल को दोपहर मै घर से फ़ोन आया की मेरा जोइनिंग लैटर आ गया है मेरी पोस्टिंग इंदौर हुए है    मैंने सोचा की आराम से ज्वाइन कर लूँगा पर पता चला की कल ज्वाइन करना ज्यादा बेहतर होगा सो अब समस्या थी  की कैसे ज्वाइन करू दिल्ली से इंदौर जाने के लिए मैंने फिर  वायुयान  का सहारा लिया पहली बार हवाई यात्रा थी जब मे जमीन से उठ रहा  था तब पता चला की आसमान   आसमान है मैंने आकाश से दिल्ली का ऐसा नज़र देखा जिसकी मैंने कल्पना तक नहीं  की थी जमीन पर कुछ चोकोर से घर आभाष दे रहे थे  मैंने पाया की आसमान से देखने पर जमीन की जमीनी हकीकत नहीं दिखती न तो कोई गन्दा घर दीखता है न सूखी नदी न ही कोई गन्दा नाला और जब ये ऊंचाई बदती जाती है  तो जमीन के साथ साथ आसमान भी सामान होता जाता है  जब मेरे यान ने उचाई पकड़ी तो मेरे साथ दो और  यात्री बैठे थे लेकिन कुछ देर बाद बे उठ कर चले गए  मै अपनी सीट पर अकेला बैठा था जैसे जैसे जहाज़ हवा मै बढता जा रहा था मेरी हवा गोल होती जा रही थी इक समय ऐसा आया की जहाज़ ने उपर उठना बंद कर दिया फिर डर लगना बंद हो गया हमारा    जीबन भी ऐसा हे है जब हम इक उचाई पर पहुच जाते है तो हमें  कभी किसी बात पर न तो हर्ष होता है न दुःख  हम बस अपने  उद्देश्य को ही देखते है  खेर रात २ बजे इंदौर जाने का कार्य क्रम सुबह 6:45  पर समाप्त  हुआ   इंदौर पहुचकर पहले तो मेडिकल बनवाना था  सो कुछ ले दे के वो भी किया   और ८ अप्रैल २०११ को १२:३४   बजे मैंने अपनी दस साल की मेहनत से  बो नोकरी पा ली जिससे मै बिलकुल भी  नहीं करना छठा था पर क्या  करू   जिन्दगी  नाम ही तो समझोता है                           इस सब के बाद भी मेरी यात्रा जारी रहेगी   पर अब क्या खोजना चाहता हु अभी मैंने उसे परिभाषित नहीं किया है