तीन साल कैसे निकल गए पता ही नहीं चला तो ये पता चला की मै वही का वही हु पता नहीं क्यों मैंने जो सोचा था वो नहीं हुआ या फिर मैंने जो होना था वो सोचा ही नहीं कभी कभी हमारे अपने कारण हमसे इतने अनजाने हो जाते है की हमें पता ही नहीं होता की वो हमरे साथ हो रहा है . कभी तो ये वि लगता है की जिन्दगी की किताब कितनी आसान है तो कभी कभी लगता है की मैंने क्या समझा है अभी तक
मैंने अपने जीवन को दिशा देने के लिए के लिए आई ए एस, पी सी एस के तय्यारी की और मै interveiw मै शामिल हुआ तीन interveiw मै इक बात सामान थी मेरी तबियत बिगड़ जाना वो भी इक जैसे मुझे पिछले तीन साल से सर्दी खांसी इसी दिन क्यों होता है कई लोग कहते की nervousness है तो कई कहते है की भाग्य पर मुझे कुछ भी पता नहीं ये क्या होता है
मै नहीं जनता की ये अच्छा है या बुरा पर मै इतना जनता हु की मै इस सब काफी दुखी हु अन्तः मन हमेशा ही कहता रहता है की मैंने ऐसा क्या किया की मेरा जीवन मरण इक छोटी सी बात के कारण प्रभाबित हो जाये मै नहीं जनता की मै क्या कह रहा हु पर इतना सत्य है की मै और मेरी नाकामयाबी का इससे गहरा सम्बन्ध है
आज मेरा इतिहास मुझसे ही सबाल करना चाहता है की बता तू क्या कर लेगा तू कितनी कोशिश कर मेरी तो अपनी ही गति है उसी के अनुसार चलूँगा तुझे जो करना हो कर ले तुम मुझे नहीं लिख सकते मै तुम्हारे जीवन मै लिख दूंगा इक और असफलता!!!!!
Tuesday, April 13, 2010
Friday, April 9, 2010
blogging ik timepass to nahi
सोच का बदलना अच्छा माना जाता है कहा तो यह भी जाता है की" बदलाव हमारी प्रगति की निशानी होती है "हम न भी बदले
समय तो बदल ही जाता .है इसे कार्ल्स मार्क्स ने'' नवीनता की अबिजेयता कहा है'' पर हमने देखा की लोकतंत्र के मोहरे हर साल बदल जाती है पर विषद वाही रहती है हर पञ्च साल मै इक सरकार आती है भी वोहि बाते कसमे पता नहीं क्यों नहीं बदलती ये सरकारे हम भी तो नहीं बदलना चाहते अपना स्वभाव अपनी नियति हम क्यों मूक दर्शक रहते है क्यों जो बात ब्लोग्ग पर कहते है चौराहे पर कहने से डरते है शायद इसी कापरिणाम की देश की samshyaya ज्यो की त्यों है आम आदमी दिनभर का गुस्सा बीबी पर अफसर अपने अधिनस्त पर और अधिनास्त्थ आम जनता पर अपना गुस्सा बया कर देता है और हम जैसे ब्लोगेर जिनके पास कंप्यूटर है इन्टरनेट है खली दिमाग है ब्लोग्ग लिखकर आत्मसंतुष्टि के अलाबा कुछ नहीं करते
समय तो बदल ही जाता .है इसे कार्ल्स मार्क्स ने'' नवीनता की अबिजेयता कहा है'' पर हमने देखा की लोकतंत्र के मोहरे हर साल बदल जाती है पर विषद वाही रहती है हर पञ्च साल मै इक सरकार आती है भी वोहि बाते कसमे पता नहीं क्यों नहीं बदलती ये सरकारे हम भी तो नहीं बदलना चाहते अपना स्वभाव अपनी नियति हम क्यों मूक दर्शक रहते है क्यों जो बात ब्लोग्ग पर कहते है चौराहे पर कहने से डरते है शायद इसी कापरिणाम की देश की samshyaya ज्यो की त्यों है आम आदमी दिनभर का गुस्सा बीबी पर अफसर अपने अधिनस्त पर और अधिनास्त्थ आम जनता पर अपना गुस्सा बया कर देता है और हम जैसे ब्लोगेर जिनके पास कंप्यूटर है इन्टरनेट है खली दिमाग है ब्लोग्ग लिखकर आत्मसंतुष्टि के अलाबा कुछ नहीं करते
Wednesday, April 7, 2010
naxalism नक्सलबाद
नक्सलबाद इक भटका हुआ आन्दोलन है गांधीजी का मत था की "साधन और साध्य दोनों की पवित्रता होना जरुरी है." पर नक्सली के साधन घोर निंदनीय है अब तो मुझे ये लगता है ki नक्सली अपने व्यक्तिगत हितो को ज्यादा तबज्जो दे रहे है. यह हमारी खुफिया तंत्र की, सरकार की, और पुलिस के निकम्मेपन की मिशाल है. रही बात समस्या के समाधान की तो जिस राह नक्सली चल रहे है उससे कुछ होना-जाना नहीं .सरकार को भी भ्रस्टाचार हटाने और रोजगार बढाने के गंभीर प्रयाश करना होंगे क्योंकि ये बात तो पक्की है नक्सलबाद की जड़े है तो आखिर बिषमता मै फिर भी ये तो समझना होगा की आदिबसियो के नाम पर कोई और अपनी रोटिया न सेंके जो भी हो आदीबाशी कुआ और खाई के बीच मै है ....... उचित शिक्षा रोजगार और प्रशाशन का सहयोगी रवैया ही आदिवासियो के मन मै बैठी सरकार की नकारात्मक छवि को समाप्त कर नक्सलबाद को समाप्त कर सकती है .........
Sunday, April 4, 2010
हमारी आवाज़
हमारी आवाज़ !!! है कोई सुनने बाला ! नहीं कोई नहीं है साहब सुचना का अधिकार तो सबको जानने का हक़ देता है ? तो क्या कर लोगे? नहीं देते सुचना बूचना !जाओ सरकार के पास साहब आप ही तो सरकार हो! नहीं हम सरकारी ऑफिसर है !!! मगर आप तो लोक सेवक है न ! फिर ऑफिसर क्यों ? ज्यादा दिमाक लगाता है कभी मंत्री से पूछा है की वो जन प्रतिनिधि से सरकार के प्रतिनिधि कैसे बन गए ??? बेचारा आम आदमी कुछ नहीं समझ पाता की सरकार कौन है? किसकी है? किसके लिए है ???
sambedna
कभी कभी हम ;ऐसी कोई बात सोचते है 'जो सामने वाला भी सोच रहा होता है जैसे दो लोग इक ही चीज से डर रहे हो पर उनमे से कोई इक पहले अपना डर बता दे [ हम खुद भी उससे डर रहे हो तो ] ; हम तुरंत उससे कहेगे की भी तुम तो बड़े डर पोंक हो मगर अंदर की बात तो यही है हमने अपनी कमजोरी को किसी और के सर पर फोड़ दिया शायद मैंने आज ऐसा ही किया मै किसी कारण से किसी से मिलना नहीं चाह रहा था पर मैंने जब जान लिया की वो भी मुझसे नहीं मिलना चाह रहा है. तो मैंने न मिलने का सारा दोष उसी पर डाल दिया. मै इकदम गलत था पर मै इसी बात पर अपने दोस्त से नाराज हो गया की वो मुझसे मिलने क्यों नहीं आया लगता है मैंने गलती की है मुझे उससे गुस्सा नहीं होना चाहिए था
Saturday, April 3, 2010
sambandho ka dayra
हर इक सितम का जबाब हमने आशुओ से दिया
उसने मेरी इसी आदत को अपनी आदत बना लिया
न रहा हमारा दायरा हम तक
तुम भी हो गए सीमित मुझ तक
सबको शिक्षा
मुन्नी जो कल तक तक अपने स्कूल क बैग को अलदीन का चिराग समझती थी अचानक
उससे डरने लगी कहती है माँ मै स्कूल नहीं जाउंगी मास्टर जी कहा की तुम जैसे लोग सरकारी स्कूल की गंदगी मै ही अच्छे लगते हो प्राइवेट स्कूल तो तुम्हे मजबूरी मै देना पद रहा है
उसने मेरी इसी आदत को अपनी आदत बना लिया
न रहा हमारा दायरा हम तक
तुम भी हो गए सीमित मुझ तक
सबको शिक्षा
मुन्नी जो कल तक तक अपने स्कूल क बैग को अलदीन का चिराग समझती थी अचानक
उससे डरने लगी कहती है माँ मै स्कूल नहीं जाउंगी मास्टर जी कहा की तुम जैसे लोग सरकारी स्कूल की गंदगी मै ही अच्छे लगते हो प्राइवेट स्कूल तो तुम्हे मजबूरी मै देना पद रहा है
Friday, April 2, 2010
शिक्षा का अधिकार
बड़े जोर शोर सरकार ने सभी को शिक्षा देने का कानून पास तो कर दिया पर पता नहीं क्यों? लगता नहीं की सरकार की मंशा सही न हो? पता सभी को हैसरकार की योजना तो बड़ी अच्छी होती है पर नोकर शाही का जाल और शिक्षको का आकाल इस उम्दा से कानून का क्या हालकरेगी किसी से नहीं छुपा है पर हाथ पर हाथ रखने से कुछ नहीं हो जाता प्रयाश तो करना ही होगा नहीं तो हम नोकरशाही और सरकार को दोषी कहने का हक़ भी खो देंगे
ब्लॉग पर ब्लॉग पड़ना
कई दिनों से इक सौक था क मेरा ब्लॉग भी कोई पड़े पर लाख कोह्सिश क बाद न तो मेरा ब्लॉग ब्लोग्बानी ए रहा न मै उसे कोई व् पद रहा है खेर मेरा इंटर बिऊ है तो सोचा की अपनी होबी को अपडेट कर लेना बेहतर होगा पर ऐसा न हो सका फिर भी मै प्रयाश कर रहा हु पता नहीं क्या होगा इंटर बिऊ का यही सोच रह हु पर जनता हु की कोई व् इस समय मेरा डर दूर नहीं कर सकता क्योंकि मुझे सब कुछ कोचना होगा क्योंकि यह मेरा अपना अपना था जो मैंने बरसो से सजा रखा था की मै आई ए एश बनुगा शायद मेरा ख्वाब हकीकत मै बदल जाये
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