सोच का बदलना अच्छा माना जाता है कहा तो यह भी जाता है की" बदलाव हमारी प्रगति की निशानी होती है "हम न भी बदले
समय तो बदल ही जाता .है इसे कार्ल्स मार्क्स ने'' नवीनता की अबिजेयता कहा है'' पर हमने देखा की लोकतंत्र के मोहरे हर साल बदल जाती है पर विषद वाही रहती है हर पञ्च साल मै इक सरकार आती है भी वोहि बाते कसमे पता नहीं क्यों नहीं बदलती ये सरकारे हम भी तो नहीं बदलना चाहते अपना स्वभाव अपनी नियति हम क्यों मूक दर्शक रहते है क्यों जो बात ब्लोग्ग पर कहते है चौराहे पर कहने से डरते है शायद इसी कापरिणाम की देश की samshyaya ज्यो की त्यों है आम आदमी दिनभर का गुस्सा बीबी पर अफसर अपने अधिनस्त पर और अधिनास्त्थ आम जनता पर अपना गुस्सा बया कर देता है और हम जैसे ब्लोगेर जिनके पास कंप्यूटर है इन्टरनेट है खली दिमाग है ब्लोग्ग लिखकर आत्मसंतुष्टि के अलाबा कुछ नहीं करते
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