कभी कभी छोटी सी बाते बड़ी लगने लगती है हमारे अपने हमें परये लगने लगते है मै नहीं जनता की मै सही होता हू या गलत पर पता नहीं हर दिन किसी छोटी सी बात पर मन कुछ परेशां हो जाता है हम किसी से कुछ नहीं चाहते पर मन कोई ऐसा सुन लेता है जो हम नहीं चाहते या कोई ऐसा कह देता है या हम ऐसा कुछ सुन लेते है जो हम नहीं चाहते ऐसा क्यों होता है शायद अपेक्षा है जो हमें यहाँ तक ले आती तो क्या करू अपेक्षा रहित जीबन कैसे जीउ
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