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Wednesday, August 15, 2012

सरकारी ऑफिस की सरकारी चाल

सरकारी ऑफिस की सरकारी चाल 


   हर रात सोने से पहले कल क्या करना है सोचता हु 
   सुबह उठ कर तेजी से ऑफिस भागता हु 

   चपराशी की सलाम पाकर अपने ऑफिसर होने के शक को यकीन मे बदलता हु 
   ऑफिस की सीडिया  चदते -चदते सबको देखता हु 

   कोई बाबु कभी नज़रे चुरा लेता है कही नमस्कार न करना पड़े 
  कभी कुछ अजनबी से चेहरे आकर बेबजह ही जी हजुरी करने लगते है 

अपनी सीट पर पहुच कर पानी अख़बार पाकर मन ही मन चपराशी को धन्यबाद देता हु 
कुछ पुरानी सी फाइल देखकर घबरा उठता हु 

फाइल को कोने मे  खिसकाकर कंप्यूटर चालू करता हु 
फिर फेसबुक पर सारे  अपडेट करता हु 

घडी को देखकर लन्च  का इंतज़ार करता हु 
लंच से लोटकर इक झपकी कुर्सी पर बैठे बैठे मारता हु 

घंटी बजाकर चपराशी से बाबु को बुलबाता  हु 
सुनकर बाबु आज नहीं आया मन ही मन मुस्कुराता हु 

हज़ार बार बाबु को कोसता हु फिर सारे  सिस्टम को कोसता हु 
फिर चाय के साथ अपना गुस्सा पी जाता हु 

दिनभर की कड़ी मेहनत  के बाद फिर फेसबुक पर अपडेट करता हु 
सरकारी ऑफिस की सरकारी चाल  कोई नहीं सुधर सकता 

20 लाईक 30 कमेंट्स पाकर थैंक्स बोलकर घर आ जाता हु  
हर रात सोने से पहले कल क्या करना है सोचता 


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