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Monday, August 20, 2012

श हरी कलरव

श हरी कलरव 

सुनाई देता है 
बस टेम्पो का होर्न ,ट्रेन के आवाज 
बहु मंजिल इमारतो के टूटने फूटने की दास्ताँ 
किसी घर से तेज आवाज मे बजते गाने 
दरबाजे पर  ए सी  के गर्म थपेड़ो के साथ आवाज 
यहाँ मंदिरों  मे भी सन्नाटा पसरा रहता है 
चिड़िया ,तोते ,बिल्लिया अब कहा दिखती है 
माँ अब कहा इनके साथ किसी को खेलने को कहती है 
अब तो सिन्सेन ,ओग्गी ,टॉम जेर्री हमारे साथी हो गए है 
भालू बन्दर ,गाय तो खो गए है 
नए जमाने  मे कुत्तो के ठाट हो गए है 
दादी माँ की जगह अब कहानिया टी वी  सुनाने लगा है 
चिट्टी को तो पहले हे मोबाइल मर चूका है 
अब ना तो सावन होता है न झूले पड़ते है 
न ही चोपलो पर लोग बैठते है  
फेसबुक पर   नए दोस्त रोज जुड़ते है 
पानी को नदियों से लाती पनिहारे अब कहा मिलती है 
अब तो बिसलेरी के बोत्ले घर पर ही मिलती है 

कम्पयूटर के इस युग मे तश्वीरे भी अब झूठ बोलती है 






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